Sunday 31 January 2010

सबसू बड़ों कुण, आ तो महादेव ही जाणै

एक बार शंकर भगवान समाधि लगाय’र बैठा हा। उणौरै नैड़ा पारवांतजी बैठा हा। यकायक समुद्र मांय सूू थोड़ा झाग (फेन) आयनै वठै गिरिया। पारवतांजी महादेव सूं पूछियौं, ए कई है? तो शिवजी कह्यौं-समुद्र में एक मोटो मच्छ आपरी पूंछ अठीनै-उठीनै पटक रियौ है, उणरा वेग सूं समुंदर रो पाणी हिलोरा मार रियौ है अर इण ठौर पूग गियौ हंै। महादेवजी रा बात सुणनै पारवतांजी अणहूंता चकित व्हैग गिया। वे महादेवजी सूं पूछियौं, औ मच्छ आपसूं भी बड़ौ हैं कंाई ? माहदेवजी कह्यौं व्है सकै, मच्छ बड़ौ ही व्है, जायनै आपरौ संदेह मिटा लौ। पारवतांजी इण बात री ठाणी की कुण मोटो हैं, इण बात रौ पतो लगावैला। पारवतांजी वठा सूं चालनै मच्छ रै कनै गया। वै मच्छ सूं पूछियौं कि थूं सबसूं बड़ौ है ? मच्छ कह्यौं नीं। म्हासंू बड़ा तौ समुदर में घणा जीव हैं अर म्है तो इण समुदर में ही रेवूं हूं, इण सारू समुदर बड़ौ हौ। गिरीजा वो ही सवाल समुदर सूं करियौ तो समुदर कह्यौं मैं तौ इणरी माटी रौ हिस्सौ हूं, इण सारू म्है किकर मोटौ व्है सकूं, आ धरती ही म्हासूं मोटी हूं। पारवतांजी धरती रै कनै पूग्याअर धरती सूं वा ही बात किदी तौ तो उणरौ जवाब हौ के म्है तौ शेष रा फणां माथै टिकियोड़ी हूं, इण सारू शेश नाग म्हासूं मोटा हैं। पारवतांजी शेष नाग रै कनै पूग्या तौ शेष नाग कह्यौं सत रा बल माथै ही इण धरती नै आपरै फण माथै बिठायनै राखूं हूं, इण सारू सत म्हासूं मोटौ हैं। जद पारवताजी वचन सूं पूछियौ तौ वो कह्यौं म्हारी उत्पति तो शबद सूं व्हिई हैं, इण सारू शबद म्हासूं बड़ो हैं। वे शबद रै कनै गिया अर पूछ्यौं तो शबद कह्यौं म्हारा जनक तो भगवान सदाशिव हैं, वे हीं म्हासूं बड़ा हैं, इण सारू आप उणरै कनै जाओ। शबद री बात सुण पारवतांजी नै घणौं संकोच व्हियौ। उणनै घणी शरम आई, वै लज्जित व्है माहदेवजी रा चरणां में जायर गिरग्या। इण तरै पारवतांजी नै आ बात समझ आई कै सदाशिव ही इण दूनिया में सबसू बड़ा हैं, उण सूं मोटा दूजा कोई नीं।

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